पृथ्वी के बारे में। पृथ्वी की आंतरिक संरचना।

   पृथ्वी के बारे में

   
पृथ्वी के बारे में
पृथ्वी के बारे में




 पृथ्वी:-  यह सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है जहां स्थलमंडल, जलमंडल एवं वायुमंडल के अलावा  जैवमंडल में पाया जाता है।


 पृथ्वी की आकृति:- पृथ्वी एकदम गोले की आकृति की नहीं है इसकी आकृति नारंगी से मिलते जुलते हैं जो दुर्गा पर चिपटी तथा भूमध्य रेखा पर थोड़ी उभरी हुई हैं वास्तविकता यह है कि पृथ्वी का अपना एक विशिष्ट अकार है जिसे जियोड कहा जाता है।



 पृथ्वी की गतियां:-  पृथ्वी में दो प्रकार की गति होती हैं-

घूर्णन:- पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती हैं। पृथ्वी के घूर्णन की अवधि 24 घंटे हैं। घूर्णन की गति के कारण पृथ्वी पर दिन एवं रात की होती है।



परिभ्रमण:- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक निश्चित दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिभ्रमण करते हैं जिसके परिभ्रमण की अवधि 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकेंड यानि लगभग 365 दिन या 366 दिन।



महत्वपूर्ण अक्षांश रेखाएं:-

  0° अक्षांश रेखा - विषुवत रेखा

  23.5° उतरी अक्षांश - क्रक रेखा

  23.5° दक्षिणी अक्षांश - मकर रेखा

  66.5° उतरी अक्षांश - आर्कटिक रेखा

  66.5° दक्षिणी अक्षांश - अंटार्टिका रेखा



 पृथ्वी का अक्षीय झुकाव:-  पृथ्वी का अक्ष अपने कक्ष तल के साथ 66.5° डिग्री का कोण बनाती हैं। पृथ्वी के अक्ष में समानता पाई जाती हैं। इसके फल स्वरुप वर्ष के विभिन्न अवधियों में दोपहर में सूर्य की ऊंचाई में अंतर होता है। इसके फलस्वरूप वर्ष की विभिन्न अवधियों में दिन और रात की अवधि में अंतर आता है एवं चार ऋतु में होती हैं। 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत पडती हैं। 


     अतः उत्तरी ध्रुव की ओर जाने पर दिन की लंबाई बढ़ जाती है एवं 66.5° उत्तर अक्षांश के उत्तर 24 घंटे से 6 महीने तक रहता है। इसे कर्क संक्रांति या ग्रीष्म अयनांत कहा जाता है। 22 दिसंबर को ठीक यही स्थिति दक्षिणी गोलार्ध में होती है जब सूर्य मकर सक्रांति आ जाता है, जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंबवत पड़ती हैं। इसे मकर संक्रान्ति या शीत अयनांत कहा जाता हैं।


      इस प्रकार क्रमशः 21 जून एवं 22 दिसंबर को उत्तरी एवं दक्षिणी गोलार्ध में दिन सर्वाधिक लंबा तथा रातें सर्वाधिक छोटी होती हैं। अतः इस दिन विश्व के विभिन्न भागों में दिन एवं रात की अवधि समान होती हैं, एवं इसे विषुव दिवस कहा जाता है।




पृथ्वी की आंतरिक संरचना


 

आयु:- 4.5 अरब वर्ष


घनत्व:- पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 हैं। पृथ्वी को तीन सकेंद्रीय परतों में विभाजित किया जाता है-


भुपटल:- यह पृथ्वी की ऊपरी परत है इसकी औसत मोटाई 33 किलोमीटर है। इसे पुनः 2 परतों में विभाजित किया जाता है। ऊपरी विछिन्न परत ग्रेनाइट चट्टानों द्वारा निर्मित है एवं यह महाद्वीपीय भाग में पाया जाता है। सिलका एवं एल्युमीनियम की अधिकता के कारण इसे सियाल भी कहा जाता है।


मेंटल:- मेंटल का विस्तार 2900 किलोमीटर की गहराई तक है  यह भूपटल और कोर के मध्य स्थित है।

भू पटल एवं मेंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थल मंडल का निर्माण करते हैं।


कोर:- यह पृथ्वी के सर्वाधिक आंतरिक परत है, जो 2900 किलोमीटर की गहराई से पृथ्वी के केंद्र तक विस्तृत है। 



भूकंप:-  बाह्य या अतंर्जात शक्तियों के कारण धरातल में कंपन होना ही भूकम्प है। जब विवर्तनिक क्रियाओं के कारण ऊर्जा उत्पन्न होते हैं एवं यह ऊर्जा तरंग की गति के रूप में संचारित होती हैं तो भूकम्प की घटना होती हैं। प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत भूकंप की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाला सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत हैं।



ज्वालामुखी:- ज्वालामुखी धरातल पर स्थित एक छिद्र या दरार होते हैं जो मैग्मा चेंबर से जुड़ा होता है एवं जिससे ज्वालामुखी लावा, गैस, वाष्प एवं पायरोक्लास्ट बाहर निकलता है। ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों में 80-90% भाग वाष्प ( हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन ) होता है।


     प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत ज्वालामुखी की उत्पत्ति की व्याख्या करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जब ज्वालामुखी का उद्गार होता है, तो मैग्मा एवं गैसों तीव्र विस्फोट के साथ धरातल पर निकलती हैं। अतः केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी अधिक विनाशकारी होते हैं। जब ज्वालामुखी उद्गार एक दरार के माध्यम से होता है, तो लावा पठार का निर्माण होता है।


    इस प्रकार के पठार अमेरिका के कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका के पराना एवं पेटागोनिया, अफ्रीका के ड्रेकेंसब्रग एवं इथोपिया उच्च भूमि, ऑस्ट्रेलिया के किंबरले पठार, भारत के ढक्कन क्षेत्र, अरब पठार, आइसलैंड के लाकी क्षेत्र, मंगोलिया, न्यूजीलैंड, फ्रांस साइबेरिया आदि में पाए जाते हैं।


उदगार के अवधि के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं-


सक्रिय ज्वालामुखी:- जिस ज्वालामुखी से लावा, गैस आदि निरंतर निकलते रहते हैं, उसे सक्रिय ज्वालामुखी कहा जाता हैं। विश्व का सर्वोच्च सक्रिय ज्वालामुखी इक्वाडोर का कोटोपैक्सी हैं। सिसली ( इटली ) का एटना, हवाई द्वीप का मोनालोआ, भूमध्य सागर का स्ट्रांबोली, सक्रिय ज्वालामुखी के उदाहरण है। स्ट्रांबोली ज्वालामुखी से प्रज्वलित गैसें निरंतर निकलती रहती हैं। अतः इसे भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ कहा जाता है।



प्रसुप्ट ज्वालामुखी:-  ऐसा ज्वालामुखी जो लंबे समय के उद्गार के पश्चात शांत हो गया हो प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाता है वैसे इस प्रकार के ज्वालामुखी में कभी भी कभी भी उद्गार की आशंका रहती है इटली का विषुवियत, इंडोनेशिया का क्रकटोआ, जापान का फ्यूजीयामा आदि।



मृत ज्वालामुखी:- जिस ज्वालामुखी में उद्गार पूर्णता बंद हो गया हो एवम पुनः उद्गार की आशंका नहीं हो, मृत ज्वालामुखी कहलाता है। मयम्मार का माउंट पोपा, अफ्रीका का किलिमंजारो, ईरान का देवबंद एवं को सुल्तान आदि इसके उदाहरण हैं।


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