जीवाणु और विषाणु में अंतर
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Difference Between Bacteria and Viruse |
जीवाणु
जीवाणु की संरचना:-
• जीवाणु एक कोशिकीय, सूक्ष्म, प्रोकैरियोटिक होते हैं। इनमें केंद्रक तथा लवक का अभाव होता है।
• पानी की एक बूंद में 5 करोड जीवाणु समा सकते हैं।
• इनकी आकृति गोलाकार एवं सर्पिली होती है।
• हिमकर यंत्र में 10°C से 118°C तक ठंडा करने पर जीवाणु निष्क्रिय हो जाते हैं।
• जीवाणु में माइट्रोकांड्रिया नहीं पाई जाती हैं।
जीवाणुओं में पोषण:-
जीवाणु में पांच प्रकार की पोषण विधियां है---
१.) प्रकाश संश्लेशी:- जीवाणु प्रकाश ऊर्जा के उपयोग से अपना भोजन बनाते हैं। इनमें पर्णहरित के स्थान पर जीवाणु पर्णहरित होता है। जैसे:- क्रोमेटियम, रोडोस्पिरीलाम आदि।
२.) रसायन संश्लेषी:- अकार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से अपना ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जैसे:- नाइट्रोमोनास, नाइट्रोबैक्टर, हाइड्रोजनोमोनास अादि।
३.) मृतजीवि:- मृत अवशेषों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे:- लैक्टोबैसिलस, एसीटोबेक्टर आदि।
४.) सहजीवी:- यह अन्य जीव के शरीर में रहकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। जैसे:- राईजोबियम आदि।
५.) परजीवी:- यह दूसरे जीव पर आश्रित होते हैं। यह जीवाणु रोग कारक होते हैं।
लाभदायक जीवाणु का उपयोग
१.) यह जीवाणु भूमि की उर्वरता बढ़ाते हैं।
२.) सड़े गले मृत अवशेषों का क्षय करते हैं।
३.) दूध से दही बनाने में जीवाणु ( लैक्टोबैसिलस ) का महत्वपूर्ण योगदान है।
४.) सिरका बनाने में चाय, उद्योग में तथा तंबाकू उद्योग में।
४.) जूट, पटसन और सन को सढ़ाकर रेशा निकालना में।
६.) औषधि उद्योग में प्रतिजैविक कार्बनिक कल्चर माध्यम में जीवाणु की किंवन क्रिया से बनते हैं।
हानिकारक जीवाणु:- कुछ जीवाणु भोजन को विषाक्त बना देते हैं। जैसे:- स्टेफाइलोकोकस, क्लॉस्ट्रीडियम, बोटूलिनियम आदि।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण में जीवाणु का उपयोग
१.) कुछ जीवाणु नाइट्रेट, नाइट्राइट व अमोनियम योगिक को स्वतंत्र नाइट्रोजन में तोड़ कर डिट्रोजनिककरण को बढ़ावा देता है। जैसे:- बेसिलस, थायोबेसिलस, माइक्रोकोक्कस आदि।
२.) एजोटोबैक्तर, एंजोसापैरिलाम तथा क्लॉस्ट्रीडियम जीवाणु की कुछ जातियां स्वतंत्र रूप से मिट्टी के कण के बीच स्थित वायु के नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
३.) एनाबिना तथा नॉनस्टॉक नामक सायनोबैक्टीरिया वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं।
४.) राइजोबियम तथा ब्रैडीराजोबीयम इत्यादि जीवाणु की जातियां लैग्यूमिनोसी (माताएं कुल) के पौधे की जड़ों में रहती हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है।
विषाणु
विषाणु की संरचना:-
• विषाणुओं को सिर्फ इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से ही देखा जा सकता है।
• विषाणु रचना में प्रोटीन के आवरण से घिरा न्यूक्लिक अम्ल होता है।
• विषाणु में न्यूक्लिक अम्ल आर.एन.ए तथा डी.एन.ए दो में से एक होता है।
• इसका आकार 10 - 500 मिलीमाइक्रोन होता है।
विषाणु का प्रकार
परपोषी प्रकृति के आधार पर विषाणु तीन प्रकार के होते हैं---
१.) पादप विषाणु:- इसका न्यूक्लिक अम्ल आर.एन.ए. होता है। जैसे:- टीएमबी, पीला, मोजेक, विषाणु आदि।
२.) जंतु विषाणु:- इसमें डी.एन.ए. या कभी कभी आर.एन.ए. भी पाया जाता हैं। ये प्रायः गोल होते हैं। जैसे:- इन्फ्लूएंजा मैंपस आदि।
३.) बैक्टीरियोफेज या जीवाणु भोजी:- यह केवल जीवाणुओं के ऊपर आश्रित रहते हैं। इनमें डी.एन.ए. पाया जाता है। जैसे:- टी2 फ़ैज़।
पादप में विषाणु जनित रोग
१.) टी.एम.वी.:- यह तंबाकू की पत्तियों पर होता है। इसमें पत्तियां सिकुड़ जाती हैं एवं छोटी हो जाती हैं तथा क्लोरोफिल नष्ट हो जाता है।
२.) बंची टॉप ऑफ़ बनाना:- यह बनाना वायरस एक से होता है। केले की फसल को काफी नुकसान होता है। भारत में यह रोग श्रीलंका से आया था।
३.) पोटैटो मोजैक वायरस:- इसमें आलू की पत्तियां बौनापन एवं चितकबरापन प्रदर्शित होती है।
मनुष्यों में विषाणु जनित रोग
मिजल्स:- यह पैरामिक्सो वायरस से बच्चों में होता है तथा पूरे शरीर को प्रभावित करता हैं।
पीत ज्वर:- यह अरबोवायरस दवारा मच्छरों के काटने से होता हैं।
चेचक:- इसमें ज्वर दर्द, चेहरे, छाती तथा हाथ पर धब्बा पड़ जाता हैं।
हरपीज:- बच्चों में होने वाला यह रोग हरपीज वायरस से होता है।
इनफ्लुएंजा:- यह श्वसन तंत्र का गंभीर रोग है। इसका कारक अर्थोमिक्सो वायरस है। 1917 में इसने भयानक बीमारी का रूप लिया था, जिसमें बहुत लोग मर गए थे।
पोलियो:- इसका संक्रमण स्पाइनल कॉर्ड या अस्थि मज्जा में होता हैं।
रेबीज या हाइड्रोफोबिया:- मनुष्य, बिल्ली, कुत्ता, बंदर में रेबीज के वायरस होते हैं। विषाणु का संक्रमण मस्तिक में होता है।
गलसुआ:- यह रोग मनुष्यों की लार ग्रंथि को प्रभावित करता है, जिससे लार ग्रंथियों की सूजन आ जाती हैं। इस रोग से बंध्यता का भय रहता है। यह रोग जीवन में सिर्फ एक बार होता हैं।
ट्रेकोमा:- यह विषाणु द्वारा उत्पन्न नेत्र रोग है। इस रोग के कारण नेत्रों में सूजन, जलन आ जाती हैं तथा पानी बहता है।
एड्स:- एड्स नामक बीमारी का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम है। यह रोग एचआईवी नामक विषाणु से होता है। इसके विषाणु मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर देते हैं। जिससे शरीर अनेकानेक रोगों की चपेट में आ जाता है।
एड्स निम्न कारणों से होता है:---
१.) संक्रमित रक्त दान करने पर
२.) असुरक्षित यौन संबंध से
३.) संक्रमित सुइयों के प्रयोग से
४.) संक्रमित माता-पिता के गर्भ में पल रहे बच्चों को।
एड्स नहीं फैलता है:-
१.) साथ में भोजन करने से
२.) बातचीत करने से
३.) चुंबन करने से
४.)साथ साथ रहने से।
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