जीव विज्ञान क्या है?
विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जीव धारियों का अध्ययन किया जाता है, जीव विज्ञान कहलाता है।
जीव विज्ञान को दो भागों में विभाजित किया जाता है- १.) वनस्पति विज्ञान २.) जंतु विज्ञान।
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जीव विज्ञान क्या है? |
• थियोफ्रेस्ट्स को वनस्पति विज्ञान एवं अरस्तु को जीव विज्ञान का जनक कहा जाता है।
कोशिका क्या हैं?
संसार में सभी जीवों, छोटे से अमीबा से लेकर बड़े हाथी तक छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बने हैं। कोशिका जीव धारियों की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई हैं। यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली से ढकी रहती हैं और इसमें स्वतः जनन की क्षमता होती है।
• कोशिका की खोज 1665 ई. में रॉबर्ट हुक ने बोतल कि कॉर्क में की थी।
• 1838 - 39 में वनस्पतिशास्त्री शालोइडेन और प्राणिशास्त्री शवान ने कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
कोशिका के प्रकार
केंद्रक की रचना के आधार पर कोशिकाएं दो प्रकार के होती हैं---
१.) असीम केद्रक:- इसमें केंद्रक के चारों और केंद्रक कला का भाव होता है। इन कोशिकाओं में कई महत्वपूर्ण कोशिकांग जैसे- क्लोरोप्लास्ट, लाइसोसोम, गोलजिकाय एवं माइट्रोकांड्रिया का अभाव होता है। जीवाणु, विषाणु, जीवाणुभोजी तथा नील हरित शैवालों में प्रोकैरियोटिक केंद्रक कोशिकाएं पाई जाती हैं।
२.) ससीम केंद्रक:- इसमें केंद्र के चारों और पूर्ण विकसित केंद्रक झिल्ली पाई जाती है। इसमें सभी कोशिकांग पाए जाते हैं। इनकी कोशिका भित्ति पूर्ण विकसित व सेल्यूलोज की बनी होती है।
कोशिका संरचना
कोशिकाएं विभिन्न आकार की होती है। जैसे- बेलनाकार, गोलाकार, अंडाकार, लंबवत, आयताकार, बहुभूजी आदि होती है। इनकी लंबाई, चौड़ाई एवं मोटाई 10 माइक्रोन मीटर - 200 माइक्रो मीटर तक होती है।
• सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा की होती है जबकि सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग पंछी के अंडे की होती है, जिसकी लंबाई 175 मीमी. होती है। सबसे लंबी कोशिका तंत्रिका ( न्यूरॉन ) की होती है।
कोशिका के मुख्य भाग
जीवद्रव्य कला:- यह हर कोशिका की बाहरी आवरण होती है, जो इस की अंतर्वस्तु को चारों ओर की माध्यम से अलग करती है। यह वसा और प्रोटीन की बनी होती है। जीवद्रव कला एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली होती है। इसका मुख्य कार्य को कोशिका और उसके बाहर के माध्यम के बीच आण्विक गतिविधि को नियंत्रित करना है।
कोशिका भित्ति:- यह केवल पादप कोशिकाओं में पाई जाती हैं। शेवालों एवं विकसित हरे पौधों की भित्ति सेल्यूलोज की बनी होती हैं, जबकि जीवाणु एवं कवकों की कोशिका भित्ति का मुख्य कार्य कोशिकाद्रव्य एवं जीवद्रव्य को बाह्य आघातों से रक्षा करना है।
माइट्रोकांड्रिया:- इसकी नामकरण अल्टमैन ने 1886 में की थी। यह अंडाकार होती हैं। इसे कोशिका का शक्ति केंद्र कहा जाता है। इसमें बहुत से श्वसनीय एंजाइम रहते हैं, जिसकी सहायता से इलेक्ट्रॉन ट्रांसफर के द्वारा एटीपी बनते हैं, जिसमें ऊर्जा रासायनिक स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहती है। यह दोहरी झिल्ली से घिरा होता है। बाह्य झिल्ली चिकनी होती है और भीतरी अंगुलिनुमा क्रिस्टी बनाती है। यह प्रोटीन संश्लेषण में भी सहायक होती है।
लवक:- यह केवल पादप कोशिका में पाए जाते हैं। संरचना में लवक लगभग माइट्रोकांड्रिया से मिलते जुलते हैं। इसमें भी दो झिल्लियां होती है पर क्रिस्टी नहीं होती।
गोलजीकाय:- इसकी खोज कैमिलो गोलजी नामक वैज्ञानिक ने की थी। ऐसे डिक्टीयोसोम भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य कोशिका भित्ति और कोशिका प्लेट का निर्माण करना है। इसमें वसा तथा प्रोटीन अधिक होता है, किंतु राइबोसोम नहीं होते। गॉल्जीकाय को कोशिका के अनमोल का आधार प्रबंधक भी कहा जाता हैं।
लाईसोसोम:- यह गोलाकार की एक परत वाली झिल्ली से घिरी संरचना होती है। इसका मुख्य कार्य अंतःकोशिकी पाचन है। यह कोशिका विभाजन में भी सहायक करती हैं। इसका एक अन्य कार्य जीर्ण कोशिकाओं को नष्ट करना है। इसे आत्महत्या की थैली के नाम से भी जाना जाता है। यह कार्सिनोजेनिक में योगदान करता है, जिससे कि समान्य कोशिका कैंसर कोशिका का रूप धारण कर लेती हैं।
अंतःद्रव्यी जालिका:- यह कोशिका भित्ति तथा केंद्रक में भरे कोशिका द्रव्य में जालनुमा ढंग से फैला होता है। यह जाल परस्पर समांतर ढंग से लगी चपटी नलिकाओं से बना होता है। इन नलिकाओं द्वारा प्रोटीन, खनिज लवण, एंजाइम, शर्करा एवं जल का परिवहन होता है।
केंद्रक:- केन्द्रक कोशिका का मुख्य भाग होता है। इसमें डीएनए तथा आरएनए और गुणसूत्र पाए जाते हैं। इसलिए केंद्रक का अनुवांशिकी में महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खोज 1831 में रॉबर्ट ब्राउन के द्वारा की गई। यह एक गोलाकार या अंडाकार संरचना है, जो प्रायः कोशिका केंद्र के निकट होती है। केंद्रक के मुख्य रूप से 4 भाग होते हैं---
१.) केंद्रक कला, २.) केंद्रक द्रव्य, ३.) केंद्रिका ४.) क्रोमेटिन धागे।
क्रोमोसोम अथवा गुणसूत्र:- गुणसूत्र को सर्वप्रथम कार्ल विलहलम वन नागिन ने 1842 में वनस्पति की कोशिका में देखा। बेबेराई एवं सतन ने सिद्ध किया कि जीन क्रोमोसोम के भाग हैं। गुणसूत्रों को अनुवांशिकीय वाहक भी कहा जाता हैं।
राइबोसोम:- इसकी खोज पैलाडे ने 1953 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की सहायता से की थी। यह अपारदर्शी होते हैं। रसायनिक दृष्टि से यह आरएनए तथा प्रोटीन के बने होते हैं। इसका प्रमुख कार्य प्रोटीन का संश्लेषण है, इसलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री भी कहा जाता है।
तारक्काय:- इसकी खोज 1888 ई. में बोबेरी ने की थी। यह केवल जंतु कोशिका में पाया जाता है। यह कोशिका विभाजन में मदद करता है। इसे डिप्लोसोम भी कहा जाता है।
स्फीरोसोम:- इसमें फॉस्फोटेज इस्ट्रेज तथा राईबोन्यूक्लीएज एंजाइम पाए जाते हैं इनका मुख्य कार्य वसा संश्लेषित करना है।
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