हमारा सौरमंडल
हमारा सौरमंडल आकाशीय पिंडों क्या समुच्चय है जिसके केंद्र में सूर्य स्थित हैं। सौरमंडल में सूर्य के अलावा पृथ्वी सहित आठ ग्रह, उपग्रह, क्षुद्र ग्रह, उल्काएं, प्लाज्मा ( विद्युत आवेशित गैस ) आदि सम्मिलित है।
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हमारा सौरमंडल |
सूर्य:- सूर्य पृथ्वी के सर्वाधिक निकट का तारा है। सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ग्रह एवं अन्य आकाशीय पिंड इस की परिक्रमा करते हैं। सूर्य निरंतर दृश्य प्रकाश, अवरक्त किरण, पराबैगनी किरण, एक्स किरण, गामा किरण, रेडियो तरंग एवं प्लाज्मा के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। सूर्य की सतह पर निरंतर परिवर्तन होता रहता है। सूर्य में स्थित चमकीले धाब्बों का प्लेजेस एवं काले धब्बों को सौर धब्बा कहा जाता है।
सूर्य के पश्चात पृथ्वी का दूसरा सर्वाधिक निकट का तारा प्रॉक्सिमा सेंचुरी हैं। इस के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 4.5 वर्ष लगता है।
ग्रह:- गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सभी आठ ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। बुध सूर्य के सर्वाधिक निकट है एवं इसके पश्चात क्रमशः शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण, एवं प्लूटो का स्थान आता है।
नोट:- प्लूटो को हाल में ही ग्रहों की श्रेणी से हटा दिया गया। इसके दो मुख्य वजह थी- १.) प्लूटो का आकार में बहुत छोटा होना। २.) इसके कक्षा का दूसरे ग्रह के कक्षा को काटना।
आंतरिक ग्रह:- बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल आंतरिक ग्रह कहलाते हैं।
बाह्य ग्रह:- बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण को बाह्य ग्रह कहा जाता है।
बुध:- सूर्य के सर्वाधिक निकट होने के कारण बुध ग्रह के परिक्रमण की गति सर्वाधिक तीव्र हैं। इस ग्रह का कोई उपग्रह नहीं है।
शुक्र:- यह ग्रह बुध की तुलना में सूर्य से अधिक दूर स्थित है और यह सर्वाधिक गर्म ग्रह हैं। इस ग्रह का द्रव्यमान एवं अकार पृथ्वी के आकार एवं द्रव्यमान के लगभग बराबर है। अतः इसे पृथ्वी का जुड़वां ग्रह भी कहा जाता है। रात को चमकीलापन की दृष्टि से चंद्रमा के पश्चात इस तरह का स्थान है। यही कारण है कि इसे 'प्यार एवं सुंदरता' की देवी भी कहा जाता है। शुक्र ग्रह को भोर का तारा भी कहा जाता है। इस शुक्र ग्रह का भी कोई उपग्रह नहीं है।
पृथ्वी:- सूर्य की बढ़ती दूरी के अनुसार इस का स्थान तीसरा हैं एवं आकार की दृष्टि से पांचवा स्थान। पृथ्वी पर ज्यादा पानी होने के वजह से इसे नीला ग्रह भी कहा जाता है। यह सौरमंडल का येसा एकमात्र ग्रह हैं, जहां स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल के आलावा जैवमंडल भी पता जाता हैं।
पृथ्वी की आकृति:- पृथ्वी पूर्णतः गौले की आकृति की नहीं हैं। इसकी आकृति नारंगी से मिलती जुलती हैं। जो धुव्रों पर चिपटी तथा भूमध्य रेखा पर थोड़ा उभरी हुई हैं। वास्तविकता यह है कि पृथ्वी का अपना एक विशिष्ट आकार हैं, जिसे जियोड कहा जाता हैं।
पृथ्वी की गति:- पृथ्वी में दो प्रकार की गति पाई जाती हैं-
• घूर्णन:- पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। पृथ्वी के घूर्णन की अवधि 24 घंटे हैं। घूर्णन गति के कारण पृथ्वी पर दिन एवं रात की घटना होती है।
• परिभ्रमण:- पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक निश्चित दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिभ्रमण करती हैं। इसके परिभ्रमण की अवधि 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड यानि लगभग 365 पूर्णांक 1/4 दिन है। एक चौथाई दिवस पर चौथे वर्ष जुड़ जाता है, जिससे फरवरी 29 दिन का होता है, उसे लीप वर्ष कहा जाता हैं।
नोट:- 3 जनवरी को पृथ्वी के सर्वाधिक निकट ( 147,000,000 किमी. ) होता है, जिसे सूर्यनीच या उपसौर कहा जाता है। तथा 4 जुलाई को पृथ्वी सर्वाधिक दूर ( 152,000,000 किमी. ) होता है, जिसे सुर्योच्च या अपसौर कहा जाता है। पृथ्वी की परिभ्रमण गति एवं अक्षिय झुकाव के कारण ऋतु परिवर्तन तथा वर्ष के विभिन्न अवधियों में दिन एवं रात की लंबाई में अंतर होता है।
मंगल:- यह ग्रह एक लाल गेंद की भांति प्रतीत होता है। वर्तमान समय में यूरोपीय संघ का बिगल -2 एवं नासा के स्पिरिट मिशन द्वारा इस ग्रह का अन्वेषण कार्य जारी है। इस ग्रह का दो उपग्रह टाइटन है, जो फोबोस ओर डीमोस है।
बृहस्पति:- यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जिस का आयतन पृथ्वी के आयतन का 1300 गुना हैं। यह ग्रह मुख्यतः गैस एवं द्रव से मिलकर बना हुआ है। सभी ग्रहों में इस ग्रह की घूर्णन की गति सर्वाधिक तीव्र हैं। इस ग्रह में ठोस सतह का अभाव है। इस ग्रह के 76 ज्ञात उपग्रह है। इसके सबसे बड़े उपग्रह का नाम ग्यानीमिड हैं। इस ग्रह को पिला ग्रह कहते है।
शनि:- सात छल्लों या वलय को पाया जाना इस ग्रह की महत्वपूर्ण विशेषता है। यह वलय विभिन्न प्रकार की चंद्रकायों द्वारा निर्मित हैं। शनि के उपग्रहों की संख्या 62 है। हमारा सौरमंडल में यह भी एकमात्र उपग्रह हैं, जिसका अपना वायुमंडल है। इस ग्रह का सबसे बड़ा उपग्रह का नाम टाइटन है।
अरुण:- यह ग्रह अपने कक्ष तल के साथ 98° डिग्री झुका है। अतः जहां सभी ग्रह घूर्णन करते हैं, वहां यह ग्रह लुढ़कता हुआ प्रतीत होता है। यह ग्रह का प्रकाश हरे रंग का दिखाई दे पड़ता है। इसे लेटा ग्रह भी कहा जाता है तथा यह ग्रह सूर्य की परिक्रमन घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में करता है।
वरुण:- वरुण एवं अरुण ग्रह को जुड़वा ग्रह कहा जाता है, क्योंकि इन ग्रहों के आकार में समानता पाई जाती हैं। साथ ही मिथेन की अधिकता के कारण दोनों ग्रहों का प्रकाश हरा प्रतीत होता है।
प्लूटो:- चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में 24 अगस्त 2006 को अंतरराष्ट्रीय खगोलीय विज्ञान संघ की बैठक हुई, जिसमें पलूटो के ग्रह होने का दर्जा खत्म कर दिया गया। इस बैठक में पहली बार वैज्ञानिकों ने ग्रहों की औपचारिक परिभाषा तैयार की। इस परिभाषा में प्लूटो को शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि इसकी आकृति वृत्ताकार नहीं है और वरुण ग्रह की कक्षा से होकर गुजरती हैं यह चंद्रमा से भी छोटे आकार का है। ग्रह की परिभाषा सौरमंडल में उसके आकार पर भी निर्भर करता है अतः अब प्लूटो ग्रह नहीं है। अतः इसे बोने का श्रेणी में रखा गया है।
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