भारतीय संविधान की उद्देशिका। भारतीय संविधान की उद्देशिका में कुछ मुख्य तत्व।

  भारतीय संविधान की उद्देशिका में कुछ मुख्य तत्व


  
भारतीय संविधान की उद्देशिका

भारतीय संविधान की उद्देशिका




> हम भारत के लोग अर्थात् संविधान का निर्माण भारत की जनता द्वारा किया गया है। जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा द्वारा संविधान का निर्माण किया गया है।



> प्रभुत्व संपन्न:- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के पास होने के बाद भारत ब्रिटिश साम्राज्य का आश्रित नहीं रहा। वह पूर्ण रुप से प्रभुता संपन्न राज्य हो गया कानूनी दृष्टि से ना तो उसके ऊपर किसी आंतरिक शक्ति ना किसी बाहरी शक्ति का प्रतिबंध है।

राष्ट्रमंडल के सदस्य या पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र का स्वतंत्र स्वैच्छिक संगठन है। उसमें शामिल सभी सदस्य राष्ट्र पूर्णतः स्वतंत्र और प्रभुत्व संपन्न है।

भारत ने यह सदस्यता अपनी इच्छा से सन 1949 में स्वीकार की, वह जब चाहे त्याग सकता है।



> समाजवाद:- संविधान के 42 वां संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा जोड़ा गया है। समाजवाद का आशय है कि आय प्रतिष्ठा एवं जीवनयापन के स्तर में विषमता का अंत हो जाए। इसका मूल तत्व कमजोर वर्गों और कर्मकारों के जीवन स्तर को ऊंचा करना तथा जन्म से मृत्यु तक सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देना। भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक समाजवाद हैं, जो मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रयोग करता है।


> लोकतंत्रात्मक मुख्यतः दो प्रकार की लोकतांत्रिक शासन प्रणालियां प्रयोग में है---

 प्रत्यक्ष प्रणाली  और अप्रत्यक्ष प्रणाली 

१.) भारत में अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग करते हुए कानून का निर्माण कर शासन चलाते हैं।

२.) लोकतंत्र को अल्पसंख्यकों की सहमति से बहुमतों का शासन भी कहते हैं। लोकतंत्र के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहलू हैं।

३.) लोकतंत्र का तात्पर्य है " जनता का " जनता के द्वारा जनता के लिए स्थापित सरकार हैं।

४.) लोकतंत्र में भारतीय संविधान निर्माताओं ने 18 वर्ष तथा उसके ऊपर के सभी वयस्कों, पुरुषों तथा स्त्रियों को अनुच्छेद 326 के तहत मतदान का अधिकार देकर प्रतिनिधित्व प्रदान किया है।वयस्क मताधिकार, सामयिक चुनाव, कानून की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता व भेदभाव का अभाव भारतीय राजव्यवस्था के लोकतंत्र के स्वरूप हैं।



> गणतंत्र:- लोकतांत्रिक रज्यव्यवस्था के दो भाग है---

राजशाही- इस अवस्था में राजप्रमुख वंशानुगत होता है।

गणतंत्र- राज्य का अध्यक्ष लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है। वह जनता का अप्रत्यक्ष चुना हुआ प्रतिनिधि होता है।

गणतंत्र का अभिप्राय है कि वह राज्य जो राजा या इसी तरह के एक शासन द्वारा शासित नहीं होती बल्कि जिसमें उच्चतम शक्ति लोगों में और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों में निहित है।



> पंथनिरपेक्ष 42 वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में इस शब्द को जोड़कर सर्व धर्म समभाव की स्थिति कोई और अधिक स्पष्ट किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में उद्देशिका  और भाग-4A में पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया है।

पंथनिरपेक्ष का तात्पर्य है कि राज्य किसी विशेष धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता नहीं प्रदान करता हैं वरण सभी के साथ समान व्यवहार करता है।



> अखंडता:- इस शब्द को 42 वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। अनुच्छेद 19 के आधार पर राज्य को नागरिकों की स्वतंत्रताओं पर देश की अखंडता के आधार पर निर्णय निर्वंधन लगाने की शक्ति प्राप्त हैं।

स्वतंत्रता- संविधान का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक आधार पर नए पद एवं अवसर की समानता, मत विचार और धर्म की स्वतंत्रता तथा व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की अखंडता के लिए अधिकार दिलाता है।

हमारी प्रस्तावना में समानता, स्वतंत्रता और संपन्नता के आदर्शों फ्रांस की क्रांति 1789 से 1799 ई. से लिया गया है। स्वतंत्रता का तात्पर्य है संविधान द्वारा व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना तथा विचार, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता इस प्रकार हो कि राज्य लोक हित आदि की सुरक्षा खतरे में ना पड़ें।

समानता से तात्पर्य है कि हर व्यक्ति को उसकी क्षमता के आधार पर बिना किसी भेदभाव के समान अवसर राजनीतिक, नागरिक तथा आर्थिक समानता प्रदान करना।

प्रस्तावना में ' न्याय ' को ' स्वतंत्रता ' और ' समता ' से भी ऊपर रखा गया है। भारतीय संविधान में न्याय का आदर्श हैं। "  सर्वेजाना सुखिनः, सर्वे संतु निरामया " इस आदर्श का उल्लेख संविधान के चौथे भाग अनुच्छेद 38 में किया गया है।

बेरूबारी संघ 1960 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि उदेशिका  संविधान का अंग नहीं है। उद्देशिका का महत्व केवल तब होता है जब संविधान की भाषा अस्पष्ट हो।

किंतु 1973 में केशवानंद भारती मामले में उच्चतम न्यायालय ने बेरुबारी के मामले में दिए गए निर्णय को उलट दिया और अपने आदेश में कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है।

गोलकनाथ बनाम स्टेट ऑफ पंजाब सन 1967 के मामले में न्यायाधिपति ने कहा- " उद्देशिका किसी अधिनियम के मुख्य आदर्शों एवं आकांक्षाओं का उल्लेख करती है "।

उद्देशिका में संशोधन- 42 वें संविधान संशोधन द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि संसद को उद्देशिका में संशोधन करने की शक्ति हैं। किंतु 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए निर्णय कि  " उद्देशिका के उस भाग को जो मूल ढांचे से संबंधित हैं, संशोधन नहीं किया जा सकता है " को प्रभावित करती है।

42 वें संविधान संशोधन को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है कि वह उद्देशिका के मूल ढांचे को नष्ट करता है।

भारतीय संविधान के प्रस्तावना को उसकी आत्मा की व्याख्या दी गई हैं।

भारत को एक गणराज्य मुख्य रूप से माना जाता है क्योंकि यहां राज्य अध्यक्ष का चुनाव होता है।

26 नवंबर 1949 को अंगीकृत भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी पंथ निरपेक्ष और अखंडता शब्द नहीं थे।

भारत के संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से घोषणा की गई कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं।

भारतीय संघ और अमेरिकी संघ दोनों में एक विशेषता यह है कि संविधान की व्याख्या के लिए उच्चतम न्यायालय को अधिकार प्राप्त हैं।

संघात्मक शासन आस्था को सर्वप्रथम कनाडा ने अपनाया था।

• संसदीय शासन प्रणाली को सर्वप्रथम ब्रिटेन ने अपनाया था। विधि के समक्ष समता का सिद्धांत इंग्लैंड के संविधान से लिया गया है।

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