वायुमंडल क्या हैं?
पृथ्वी के चारों ओर हजारों किलोमीटर की ऊंचाई तक फैले हुए किसी आवरण को वायुमंडल कहा जाता है। वायुमंडल अनेक गैसों का मिश्रण है।
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वायुमंडल क्या हैं? |
वायुमंडल की संरचना
वायुमंडल में वायु के अनेक सकेंद्रीय परत है, जो घनत्व एवं तापमान की दृष्टि से एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। तापमान के उधर्वाधर विभिन्न वितरण के आधार पर वायुमंडल को निम्नलिखित पदों में विभाजित किया जाता है:---
क्षोभमंडल क्या है?
यह वायुमंडल की सबसे निचली एवं संघनतम परत हैं, जिसमें वायु के संपूर्ण भार का 75% भाग पाया जाता है। सकेंद्रीय होने के कारण बादलों का निर्माण, तूफान, चक्रवात आदि की उत्पत्ति जैसी मौसम सभी घटनाएं इसी मंडल में होती हैं। इस स्तर में ऊंचाई के साथ तापमान में कमी आती हैं। तापमान में यह गिरावट की दर 1°C प्रति 165 मीटर या 3.6°F/1000 फिट या 6.5°C/km की हैं। इसे सामान्य ताप हरास दर कहा जाता है।
समताप मंडल क्या है?
क्षोभ सीमा के ऊपर समताप मंडल स्थित है। इसकी ऊंचाई धरातल से 50 किलोमीटर तक है। यहां सूर्य की पैराबैंगनी किरणों का अवशोषण करने वाली ओजोन गैस मौजूद होती है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन हेलोन जैसी हेलोजेनेटेड गैस के कारण इस मंडल का काफी नुकसान हुआ है। समताप मंडल में बादलों का अभाव होता है तथा तथा धूल, कण एवं जलवाष्प भी नाम मात्र के ही पाए जाते हैं।
मध्य मंडल क्या है?
समताप मंडल के ऊपर स्थित होता है एवं 50 किलोमीटर से 80 किलोमीटर की ऊंचाई से लेकर 400 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच फैला हुआ है।
आयन मंडल क्या है?
इसे तापमंडल भी मंडल कहा जाता है। इस मंडल का फैलाव 80 किलोमीटर से लेकर 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक हैं। इस मंडल में तापमान तेजी से बढ़ता है एवं इसके ऊपरी सीमा पर या बढ़कर 1000°C डिग्री सेल्सियस हो जाता है। पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगे इस मंडल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर वापस लौट आती हैं। इस मंडल की हवा विद्युत आवेशित होती हैं अतः इस मंडल में वायु के कण विद्युत विसर्जन के कारण चमकने लगते हैं।
सूर्यातपः क्या है?
सौरमंडल में सूर्य की ऊर्जा अथवा ऊष्मा का प्रधान स्रोत हैं। सूर्य तल का औसत तापमान 5700°C (6000°k) डिग्री सेल्सियस हैं। सूर्य के केंद्रीय भाग का अनुमानित तापमान लगभग 1.5 से 2.5 करोड़ डिग्री केल्विन है। इस प्रकार सूर्य दहकता हुआ गैसीय पिंड है, जिससे निरंतर चारों ओर अपरिमित ऊर्जा का विकिरण होता रहता है।
वायुमंडल का संघटन
• समुद्र तल पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस पृथ्वी से होने वाले दीर्घ तरंग विकिरण को आंशिक रूप से सोख कर उसे गर्म रखती है।
• ओजोन गैस पराबैगनी किरणों से जीवों की रक्षा करती है।
• वायुमंडल का 50% भाग 5.6 किलोमीटर की ऊंचाई तक सीमित है। वायुमंडल के निचले स्तर में भारी गैस (कार्बन डाइऑक्साइड 20 किलोमीटर तक, ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन 100 किलोमीटर तक) पाई जाती है, जबकि अधिक ऊंचाई पर हाइड्रोजन, हीलियम, नियोन, क्रीप्टन, एवं जेनॉन जैसी हल्की गैस पाई जाती है।
• गैसों के अलावा वायुमंडल में जलवाष्प, धुआ के कण, धूल कण के विभिन्न अनुपात में पाए जाते हैं।
• धूलकण सूर्य से आने वाली किरणे के परकिर्णन का भी कार्य करते हैं, जिसके कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
वायुदाब
सागर तल पर वायुदाब अधिकतम होता है। वायुदाब को मिली बार (mb) में मापा जाता है। यद्यपि वायुदाब परिवर्तनशील होता है फिर भी समुद्र तल पर औसत वायुदाब 29.92 इंच या 76 सेंटीमीटर पारे के समतुल्य या 1013.2 मिली बार माना जाता है। वायुदाब में जलवाष्प की मात्रा बढ़ने पर वायुदाब में कमी आ जाती हैं। किस स्थान पर सारा दिन एक समान वायुदाब नहीं रहता है। किस स्थान पर वायुदाब दो बार बढ़ता हैं एवं दो बार घटता है।
वायुदाब क्या है?
वायु में भार होता है एवं धरातल पर इसका जो दबाव पड़ता है, उसे वायुदाब कहा जाता है।
अथवा
प्रति इकाई क्षेत्रफल पर वायु के स्तंभ के भार को वायुदाब कहा जाता है।
पवन:- पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। क्षैतिज रूप से गतिशील हवा को ही पवन कहा जाता है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण अपकेंद्रीय बल की उत्पत्ति होती है एवं पवन की दिशा फेरेल नियम द्वारा निर्धारित होती है।
वर्षा का वितरण:- संसार में औसत वार्षिक वर्षा मात्र 97 सेंटीमीटर होती है। भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5 डिग्री अक्षांश तक काफी अधिक वर्षा होती हैं। वैसे स्थानीय तूफान या झंझावात जिनमें ऊपर की ओर तीव्र हवाएं चलती हैं तथा बिजली की चमक एवं बादलों की गरज के साथ घनघोर वर्षा होती हैं एवं कभी-कभी इतनी तेज वर्षा होती है कि ऐसा प्रतीत होता है कि मानो मेघ ही फूट पड़े हो। इस प्रकार की वर्षा को वर्षा प्रस्फोट कहा जाता है।
चक्रवात:- जब वायु में अंतर पड़ने के कारण केंद्र में निम्न दाब का निर्माण हो जाता है एवं उसके चारों ओर उच्च दाब रहता है तो वायु चक्राकार प्रतिरूप बनाते हुए उच्च दाब से निम्न दाब केंद्र की ओर तेजी से चलने लगती हैं, इसे ही चक्रवात कहा जाता है। चक्रवात में वायु के चलने की दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत एवं दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुईयों की दिशा में होती है।
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