गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा। गुरुत्वीय त्वरण क्या है? गुरुत्व केंद्र।

  गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा


    वह बल जिसमें पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपनी और खींचती है या आकर्षित करती है पृथ्वी का गुरुत्वीय बल या गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।


ऊंचाइयों से गिराया गया पत्थर पृथ्वी की ओर गिरता है क्योंकि पृथ्वी पत्थर के ऊपर आकर्षण का बल लगाते हैं और उसे अपनी तरफ नीचे की ओर आकर्षित करती हैं, जिससे पृथ्वी की ओर पत्थर नीचे गिरती हैं।


 पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है।




गुरुत्वाकर्षण का विश्वव्यापी नियम :-


     विश्व में प्रत्येक वस्तु एक बल से दूसरी वस्तु को आकर्षित करती हैं, जो उनके द्रवमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है एवं उनके बीच दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।


          m1🌕 A  -------- r  --------  B 🌍m2



 हमने माना कि m1 और m2 द्रव्यमानों की दो वस्तुएं A और B एक दूसरे से r दूरी पर रखी है। इन दोनों वस्तुओं के बीच आकर्षण का बल F होता है।


 अब गुरुत्व के विश्वव्यापी नियम के अनुसार:


गुरुत्वाकर्षण बल,

            F = G × m1×m2/r^2


जहां, G एक स्थिरांक है, जो "सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण स्थिरांक" कहलाता है।




 गुरुत्वीय त्वरण क्या है?


     स्वतंत्र रूप से पृथ्वी की ओर गिरती किसी वस्तु के वेग में प्रति सेकंड होने वाले वृध्दि को गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं।


• गुरुत्वीय त्वरण को हम g से प्रदर्शित करते हैं।

• g का प्रमाणिक मान 45° अक्षांश और समुद्र तल पर  9.5 मीटर पर सेकंड स्क्वायर होता है।




गुरुत्वीय स्थिरांक, G का मूल्य


  यदि m1 = m2 = 1Kg

  तथा   r = 1m

   तो, F = G



अतः, गुरुत्वीय स्थिरांक G आंशिक रूप से गुरुत्वाकर्षण के बल के बराबर होता है जो एक दूसरे से इकाई दूरी पर रखी हुई इकाई द्रव्यमानों की दो वस्तुओं के बीच पाया जाता है।

 सार्वत्रिक गुरुत्वीय स्थिरांक, G का मूल्य 6.67 × 10^-11 N m^2/ kg^2 पाया ज गया हैं।




ध्रुवों पर पृथ्वी के घूर्णन होने से वस्तु का प्रभाव:-

 

•  यदि अलग अलग द्रव्यमान की दो वस्तुओं को स्वतंत्र रूप से ऊपर से गिराया जाता है, तो वह एक साथ पृथ्वी पर पहुंचेगी।

•  भूमध्य रेखा पर वस्तु का भार सबसे कम व धुव्र पर सबसे अधिक होता है।

•  गुरुत्वीय त्वरण का मान अलग-अलग स्थानों पर अलग अलग होता है।

• किसी वस्तु का भार पृथ्वी के केंद्र में शून्य होता है।

•  पृथ्वी तल से ऊपर या नीचे जाने पर वस्तु के गुरुत्वीय त्वरण का मान घटता है।

•  चंद्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी की अपेक्षा 1/6 भाग होता है।

•  यदि पृथ्वी अपने अक्ष के परितः घूमना बंद कर दे तो ध्रुवों के अलावा अन्य स्थानों पर वस्तु के भार में वृद्धि हो जाएगी।

•  यदि पृथ्वी तेजी से घूमने लगे तो केवल धुव्रों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर वस्तु के भार में कमी हो जाएगी।




गुरुत्व केंद्र:-

  

   किसी  वस्तु के गुरुत्व केंद्र से गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा उस वस्तु के आधार के क्षेत्रफल के अंदर से होकर गुजरती है।



उदाहरण:-


•    बोझा या सामान लेकर पहाड़ पर चढ़ते समय मनुष्य आगे झुक जाता है, क्योंकि इस अवस्था में उसके गुरुत्व केंद्र से होकर गुजरने वाली उद्ध्रवाधर रेखा उसके पैरों के पास आधार से होकर जाती है।

•   पीसा की झुकी मीनार अभी भी टिकी हुए हैं, क्योंकि गुरुत्व केंद्र से गुजरने वाली उद्ध्रवाधर रेखा अभी भी आधार के क्षेत्रफल के अंदर से ही गुजर रही है। यदि ये उद्ध्रवाधर रेखा बाहर से गुजरेगी तो मीनार गिर जाएगा।

•   खोखले शंकु का गुरुत्व केंद्र शंकु के अक्ष पर आधार से एक तिहाई 1/3 ऊंचाई की दूरी पर होता है।

•   त्रिभुजाकार ठोस में माध्यमिकाओं का कटान बिंदु उसका गुरुत्व केंद्र होता है।





 लिफ्ट में पिंड का भार:-


•    यदि लिफ्ट ऊपर जाती है, तो व्यक्ति को अपना भार बढ़ा हुआ महसूस होता है।

•   यदि लिफ्ट नीचे जाती है, तो व्यक्ति को अपना भार घटा हुआ महसूस होता है।

•   यदि  लिफ्ट की डोरी टूट जाती है, तो स्वतंत्र अवस्था में पिंड नीचे गिरता है और व्यक्ति को भारीहीनता की स्थिति महसूस होती है।

•    यदि लिफ्ट एक समान वेग से चलती है, तो व्यक्ति को अपने भार में कोई परिवर्तन महसूस नहीं होता है।





उपग्रहों में भारहीनता:-


•  कृत्रिम उपग्रह में भार हीनता की अवस्था होती है।

•   उपग्रहों में भारहीनता के कारण ही अंतरिक्ष यात्री अपना भोजन विशेष प्रकार के ट्यूब में ले जाते हैं।

•   चंद्रमा भी उपग्रह हैं किंतु उसका द्रव्यमान अधिक होने के कारण वहां भारहीनता की अवस्था नहीं होती है। वहां भार का अनुभव नहीं होता है।





भू - स्थाई उपग्रह:-


    यह पृथ्वी तल से 3600 Km किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं। इन्हें संचार उपग्रह भी कहा जाता है।

   पृथ्वी के परितः घूमने वाले कृत्रिम उपग्रह से बाहर कोई गेंद गिराई जाती है, तो वह पृथ्वी के परितः उपग्रह के समान आवर्तकाल के साथ घूमती रहेगी।

   कृत्रिम उपग्रह में विद्युत ऊर्जा का स्रोत सौर सेलें होती है।




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