राष्ट्रपति की योग्यता। राष्ट्रपति की शक्तियां।

  राष्ट्रपति की योग्यता


        अनुच्छेद 58 के अनुसार राष्ट्रपति पद की निम्न अर्हताएं होगी:----

> भारत का नागरिक हो।

> 35 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका हो।

> लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो अर्थात् उसका नाम किसी संसदीय निर्वाचन मंडल में मतदाता के रूप में पंजीकृत हो।

> भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर ना हो।


नोट:-  यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद पर अथवा किसी संघ अथवा  राज्य के मंत्री परिषद का सदस्य हो तो वह लाभ का पद नहीं है।



     
राष्ट्रपति की शक्तियां एवं शक्तियां
राष्ट्रपति की शक्तियां एवं शक्तियां



 राष्ट्रपति की शक्तियां


संविधान द्वारा प्रदत्त अनुच्छेद 53 में दिए गए उपबंधों के आधार पर संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिसके आधार पर राष्ट्रपति कार्यपालिका शक्ति का प्रधान होता है। इन शक्तियों को मर्यादाओं की आधीन निम्न भागों में बांटा जा सकता है:---


> कार्यपालिका शक्ति या प्रशासनिक शक्ति ---  

    भारतीय गणतंत्र का प्रधान होता है।

अनुच्छेद 77 के अनुसार समस्त कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की जाती है।

वह देश के सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति तथा हटाने का अधिकार रखता है। उक्त शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करेगा।

प्रधान मंत्री

संघ के अन्य मंत्री

उच्चतम तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक

राज्यों के राज्यपाल

वित्त आयोग

मुख्य निर्वाचन आयोग तथा सदस्य

संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के समूह के लिए संयुक्त आयोग।

राज्य भाषा आयोग

भाषा  अल्पसंख्यक आयोग

अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए विशेष अधिकार।

पिछड़े वर्गों की दशायों का अन्वेषण करने के लिए आयोग।

अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन के लिए आयोग।


> सैन्य शक्तियां:-  राष्ट्रपति देश की प्रतिरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है। अपनी सैन्य शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की मंत्रणा से करता है।


> राजनयिक शक्तियां:-  इस शक्तियों में संसद के अनुसमर्थन  के उपरांत विदेशों से सन्धियां और अंतरराष्ट्रीय समझौते राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं। अन्य देशों में राजदूतों तथा कूटनीतिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है।


> आपातकालीन शक्तियां:-  संविधान में अनुच्छेद 352 से अनुच्छेद 360 में आपात शक्तियों का उपबंध है।


> न्यायिक शक्तियां:-  अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्ध दोष ठहराए गए, किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, परिहार या लघु करण की शक्ति प्रदान करता है।


     राष्ट्रपति निम्न मामलों में समाधान की शक्ति प्रदान करता है---

यदि दंडा देश सैन्य न्यायालय ने दिया हो।

मृत्युदंडादेश के मामले में, क्षमादान देना, दंड का लघु करण करना।


लघु करण:-   कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।


परिहार:-  दंड की मात्रा को उसकी प्रकृति में बिना किसी बदलाव से कम करना।


विराम:-  किसी विशेष कारणों से दंड के साथ प्रकृति को भी बदल देना।


प्रविलंब:-  मृत्युदंड का निलंबन करना।


       सार्वजनिक महत्व की विधि या तथ्य के किसी ऐसे प्रश्न पर राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से राय मांग सकता है। राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय की राय को माने यह बाध्य नहीं है।  राय केवल सलाह के रूप में होती है।


> विधायी शक्तियां:-  भारत का राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है---

अनुच्छेद 85 के तहत संसद के दोनों सदनों को आहूत करने सत्रावसान करने और लोकसभा के विघटन की शक्तियां प्राप्त हैं।

गतिरोध होने पर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों का आह्वान करता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।

लोकसभा के लिए प्रत्येक निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के आरंभ में दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा तथा सदन को आह्वान का कारण बताएगा।

संसद के एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियुक्ति तारीख के बीच छह माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।

अनुच्छेद 86 में दिए गए उपबंधों के अनुसार राष्ट्रपति को किसी एक सदन अथवा दोनों सदनों में अभिभाषण करने तथा संदेश भेजने का अधिकार है।

राष्ट्रपति सदन के दोनों सदन में से राज्यसभा में साहित्य, कला, विज्ञान और सामाजिक विषयों पर विशेष ज्ञान रखने वाले 12 व्यक्तियों को नाम निर्देशित करने तथा लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व यदि प्रयाप्त नहीं होने पर अधिकतम 2 सदस्य नाम निर्दिष्ट करेगा।



 राष्ट्रपति के कर्तव्य


राष्ट्रपति का यह कर्तव्य है कि वह संसद के समक्ष यह दस्तावेज रखवाता है जो निम्न है---

१.) वार्षिक वित्तीय वितरण

२.) नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन

३.) वित्त आयोग की सिफारिशें

४.) संघ लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन

५.) अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विशेष अधिकारी का प्रतिवेदन

६.) पिछड़े वर्ग के आयोग का प्रतिवेदन

७.) भाषाई अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों का प्रतिवेदन।



कुछ विषयों पर विधान पुनः स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की अपेक्षा हो यह निम्न विषय हैं---

१.) नए राज्यों के निर्माण या सीमा परिवर्तन

२.) अनुच्छेद 31 क(1) में विनिर्देशित विषयों में से किसी का उपबंध करने के लिए

३.) धन विधेयक (अनुच्छेद 110)

४.) भारत की संचित निधि से वव्य व्यापार की स्वतंत्रता पर रोक लगाने वाले राज्य का कोई विधेयक

५.) अनुसूचित जातियों और जनजातियों के विशेषाधिकार कार्य का प्रतिवेदन

६.) भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक

७.) संसद के किसी सदस्य की अयोग्यता के संबंध में दलबदल के अलावा कोई प्रश्न उत्पन्न होता है, तो उसका निर्णय राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सलाह से करेगा।

८.) अध्यादेश जारी करने की शक्ति अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को प्रदान की गई है----

न्यायालय अध्यादेश जारी किए जाने के लिए कारणों की जांच नहीं कर सकते हैं।

राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश का प्रभाव केवल 6 माह तक रहता है यदि 6 मास के अंदर संसद द्वारा अनुमोदित कर दिया जाए।

यदि संसद का एक सत्र चल रहा हो और दूसरे सदन का सत्र स्थगित हो, तब भी अध्यादेश जारी किया जा सकता है। संसद द्वारा अनुमोदित होने के पश्चात तथा राष्ट्रपति की अनुमति से वह अधिनियम बन जाता है।

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