विद्युत आवेश की परिभाषा
विद्युत आवेश :- द्रव्य के साथ जुड़ी हुई वह अदिश भौतिक राशि है जिसके कारण चुम्बकीय और वैद्युत प्रभाव उत्पन्न होते है, आवेश कहलाती है। किसी वस्तु में इलेक्ट्रॉनों को अधिकता अथवा कमी से आवेश की अभिधारणा प्राप्त होती है। ऋणावेशित वस्तु में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता व धनावेशित वस्तु में इलेक्ट्रॉनो की कमी होती है।
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विद्युत आवेश की परिभाषा |
विद्युत आवेश :- प्रसिद्ध वैज्ञानिक थेल्स (thales) ने बताया की जब काँच की छड़ को रेशम के कपडे से रगड़ा जाता है तो कांच की छड़ रगड़न के बाद छोटे छोटे कणों, कागज़ के टुकड़े इत्यादि को चिपकाना प्रारम्भ कर देता है, घर्षण प्रक्रिया (रगड़ना) के बाद पदार्थ सामान्य की तुलना में कुछ अलग व्यवहार प्रदर्शित करता है और पदार्थ के इस विशेष गुण को ‘विधुत आवेश ‘ नाम दिया गया।
पदार्थ द्वारा आवेश (विशेष गुण) ग्रहण करने के पश्चात पदार्थ को आवेशित पदार्थ कहा जाता है।
आवेशों के गुण :– जब घर्षण से विद्युत उत्पन्न की जाती है, तो जिसमें वस्तु रगड़ी जाती है और जो वस्तु रगडी जाती है दोनों ही में समान परिमाण में विद्युत आवेश उत्पन्न होते है, लेकिन दोनों वस्तुओं पर उत्पन्न आवेशों की प्रकृति एक दूसरे के विपरीत होती है।
एक वस्तु पर के आवेश को ऋण आवेश तथा दूसरी वस्तु पर के आवेश को धन आवेश कहते है।
आवेश के लिए ऋणात्मक एवं धनात्मक पदों का प्रयोग सर्वप्रथम बेंजामिन फ्रेंकलिन ने किया था। बेंजामिन फ्रेंकलिन के अनुसार काँच को रेशम से रगड़ने पर काँच पर उत्पन्न विद्युत को धनात्मक विद्युत कहा गया और एबोनाइट, या लाख की छड़ को फलानेल या रोएँदार खाल-इन दोनों में से किसी से रगड़ने पर उन पर उत्पन्न विद्युत को ऋणात्मक विद्युत कहा गया।
घर्षण के कारण दोनों प्रकार की विद्युत बराबर परिमाण में एक ही साथ उत्पन्न होती है। नीचे के सारणी में कुछ वस्तुएँ इस ढंग से सजायी गयी है कि यदि किसी वस्तु को, किसी दूसरी वस्तु से रगड़कर विद्युत उत्पन्न की जाय, तो सारणी में जो पहले (पूर्ववर्ती) है, उसमें धन आवेश तथा जो बाद मे (उत्तरवर्ती) है, उसमें ऋण आवेश उत्पन्न होता है।
रोआँ, फलानेल, चपड़ा, मोम, काँच, कागज, रेशम, मानव शरीर, लकड़ी, धातु, रबर, रेजिन, अम्बर, गंधक, एबोनाइट
उदाहरण- यदि काँच को रेशम के साथ रगड़ा जाय तो काँच में धन आवेश उत्पन्न होता है, लेकिन यदि काँच को रोआँ से रगडा जाय तो काँच में ऋण आवेश उत्पन्न होगा (उपर्युक्त सारणी के नियमानुसार)
सजातीय आवेशों में प्रतिकर्षण होता है अर्थात धन आवेशित वस्तुएँ एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती है और ऋण आवेशित वस्तुएँ भी एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करती है।
विजातीय आवेशों में आकर्षण होता है अर्थात एक धन आवेशित वस्तु और एक ऋण आवेशित वस्तु में आकर्षण होता है।
विद्युत धारा की दिशा :- किसी परिपथ में धारा का प्रवाह सदैव एक ही दिशा में होता रहता है। विद्युत धारा का मात्रक एंपियर होता है।
विद्युत धारा के प्रभाव
चुंबकीय प्रभाव :- चुंबकीय क्षेत्र के दिशा मैक्सवेल के कॉर्क स्क्रु नियम, फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियम आदि से की जाती है।
विद्युत चुंबक :- नरम लोहे के क्रोड वाली परीणालिका विद्युत चुंबक कहलाती है। नरम लोहे से स्थाई चुंबक बनता है। विद्युत चुंबक के उपयोग डायनेमो, ट्रांसफार्मर, विद्युत घंटी, तार संचार, टेलीफोन, अस्पताल आदि में होता है।
विद्युत मोटर :- विद्युत मोटर एक एसी युक्ति हैं, जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित करते हैं।
मोटर का सिद्धांत :- विद्युत मोटर, धारा के चुंबकीय प्रभाव का उपयोग करता है। मोटर इस सिद्धांत पर कार्य करता हैं कि आयताकार कुंडली को जब चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है और उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुंडली पर बल कार्य करता है जो उसे लगातार घूम आता है जब कुंडली घूमते हैं, जो उससे संलग्न धूरी घूमती हैं। इस तरह मोटर को प्राप्त विद्युत ऊर्जा घूर्णन को यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है।
विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव
विद्युत अपघट्य :- जब जल में किस धातु के लवण, अम्ल और क्षार को घोल दिया जाता है तो घोल विद्युत का सुचालक हो जाता है। इससे विद्युत धारा गुजर सकती हैं।
जिस उपकरण में घोल का विद्युत अपघटन होता है उसे वोल्ट मीटर कहते हैं।
संचालन सेल :- इसमें विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में जमा किया जाता है।
विद्युत अपघटन के उपयोग :-
धातु को निष्क्रिय में, जैसे - एल्यूमिनियम, सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम आदि धातु का।
विद्युत अपघटन के विश्लेषण में HCL, HCN आदि के बनावट का पता लगाया जाता है।
विद्युत लेपन या कलई करने में यह क्रिया के लिए प्रायः सोना, चांदी, तांबा निकेल और क्रोमियम धातु लिया जाता है।
विद्युतीय मुद्रण बड़ी प्रेशो में अच्छी तरह छफाई करने के लिए।
धातुओं के शुद्धिकरण में इससे तांबा का शुद्धिकरण 99.99% तक किया जाता हैं।
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